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जंग महानता की

Meri tanhayi
Meri tanhayi
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मैंने लेखन के अलावा गीतों के संग्रह पर भी अपना काफी समय िबताया है और हाल में ही अपने बनाए गीतों के संगह में लोगो के ऐसे कमेन्ट देख कर मन दुखी हो गया िक सभी में अपने पसंद के कलाकार को श्रेष्ठ सािबत करने की होड़ सी लगी है,
उधर खेल में सिचन तेंदुलकर का मुकाबला हमेशा िकसी न िकसी िखलाडी से होता ही रहता है
और यहाँ मोहम्मद रफ़ी और िकशोर कुमार के फैन्स के बीच में जंग जरी है,
भला बाग़ के िकसी एक फूल को कोई कैसे सबसे बिढ़या कह सकता है?
सबकी अलग -अलग खािसयत होती है और कोई रंग में जुदा होता है तो कोई खुशबु में. !सबकी अपनी अलग पहचान होती है.
जैसे गुलाब को बिढ़या कहा जा सकता है
पर इसके िलए कमल, रजनीगंधा, तुिलप आिद फूलों को गन्दा कहना जरुरी है क्या?
मुझे तो हर गायक गाियका अपने-अपने क्षेत्र में मािहर नज़र आते हैं.
चाहे रफ़ी हो या मुकेश उनकी अपनी अलग शैली थी अपनी अलग आवाज़ थी
िजसके बल पर वो इतने महान हुए.
रफ़ी, िकशोर, मुकेश के अलावा उस समय मन्ना डे, हेमंत कुमार, तलत महमूद, महेंद्र कपूर जैसे मील के पत्थर भी थे,

हेमंत जी की अलग ही मस्ती थी,
जैसे सोलहवा साल का कोई भी गीत उठा कर देख लीिजये
या-
जाने वो कैसे लोग थे िजनके प्यार को प्यार िमला.. गीत सुन लीिजये
तुम पुकार लो तुम्हारा इन्तेजार है.. ये भी सदा बहार गीतों में शिामल है.
अब यहाँ पर उनके पुरे गीत तो सुना नहीं सकता..

ऐसे ही मन्ना डे जी शास्त्रीय संगीत में मािहर थे.
उपकार का गया उनका गीत आज भी कई लोगो को रुला जाता है-
होगा मसीहा सामने तेरे फिर भी न तू बच पायेगा,
तेरा अपना खून ही आखिर तुझको आगा लगाएगा,
आसमान में उड़ने वाले िमटटी में िमल जायेगा..
कसमे वादे प्यार वफ़ा सब बाते हैं बातो का क्या?

या िफर काबुलीवाला का गीत-
ए मेरे प्यारे वतन ए मेरे िबछड़े चमन, तुझपे िदल कुर्बान,
तू ही मेरी आबरू, तू ही मेरी आरजू, तू ही मेरी जान..

या
इत जले दीपक उत मन मेरा
िफर भी न जाये मेरे मन का अँधेरा,
तडपत-तडपत उम्र गवाई,
पूछो न कैसे मैंने रैन िबतायी..!

तलत जी का गया गीत-
ये हवा ये रात ये चांदनी…

िफर वही शाम वही गम वही तन्हाई है,
िदल को समझाने तेरी याद चली आई है..

या जहांआरा के सरे गीतों को ले लीिजये..

महेंद्र कपूर जी तो देश भिक्त गीतों के शान कहे जाते हैं..
आप देशभक्त हैं तो क्या आप िसर्फ अपने पसंद के गायक के गीत ही सुनेंगे?
िकसी और गायक के गाये गीत को नहीं?
गीत तो खुसबू की तरह है, प्यार की तरह है िजसका कोई धर्म नहीं होता
कोई मजहब नहीं होता और न िकसी एक मुल्क की जागीर कोई गीत हो सकता है.
उसे पसंद करने वालो में कोई भी हो सकता है.
वरना यहाँ िवदेशी गीत नहीं सुने जाते,
अपने दुश्मन देश में भी यहाँ के गाये गीत बजाये जाते हैं
और वहा के गायक जैसे आितफ असलम, राहत फ़तेह अली , गुलाम अली यहाँ भी पसंद िकये जाते हैं. कॉपी राईट िकसी का भी हो मगर उसे पसंद करने का कॉपी राईट िकसी के पास नहीं है.
और रही गीतों की बात तो गीत तो मूड के िहसाब से पसंद और नापसंद होते हैं, समय सभी को बदल देता है उसके आगे िकसी की नहीं चलती.
ना तो िकसी बच्चे को ये बताना आसान होता है की उसे माँ बाप में से सबसे ज्यादा कौन पसंद है, ना आप अपने आँख कान नाक जीभ हाथ पैर में से िकसी को अलग करना चाहेंगे. जैसे आपको हर अंग अपने शारीर का प्यारा है वैसे ही सबकी अहमियत अलग होती है.
ऐसे नासमझ ही अपने धर्म को महान बता कर दुसरे का अपमान िकया करते हैं जबिक हर धर्म एक ही है, सबका कहना एक ही है की मानवता की रक्षा करो और शांित व् प्रेम फैलाओ..
बस ऐसे कमेंट्स पढ़ कर इस पर जो भी िदल में आया आपके सामने रख िदया..
कैसा है ये तो आप ही बता सकते हैं.!!

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