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एक सराहनीय प्रयास सत्यमेव जयते

Meri tanhayi
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satyamev jayte


सत्यमेव जयते जैसे सार्थक प्रयास की जगह आमिर खान मनोरंजन के किसी और विषय पर भी अगर टी.वी. शो बनाते तो वो भी दर्शकों में लोकप्रिय जरुर होता, क्यूँकि आमिर खान ने जनता की समस्या को अब अपनी समस्या मानकर उसे सबके समक्ष प्रस्तुत करना शुरू कर दिया है, और लोग तो लोग ही होते हैं, इनको बस बोलना ही आता है अच्छा चाहे बुरा, जो भी मुंह से निकलेगा बोलेंगे ही. आमिर साल में एक से ज्यादा फिल्मे भी कर सकते हैं, अगर बाज़ार को भुनाना ही सिर्फ उनका मकसद होता तो सबसे पहले तो एक साथ कई फिल्मों में एक साथ काम कर रहे होते, मगर ऐसा नहीं है. और ये बात जानना इसलिए जरुरी है क्यूंकि हम जिस पर कोई इलज़ाम लगा रहे हैं पहले उसके पहलु पर गौर कर लेना भी जरुरी है, आमिर अब सिर्फ एक फिल्म स्टार ही नहीं एक ऐसा ब्रांड बन गए हैं जो लोगों की समस्याओं को मनोरंजक तरीके से सामने तो लेट ही हैं, साथ ही उस समस्या का हल भी बताते हैं. समस्या तो हर कोई बता रहा है कि सड़क ख़राब है, पानी गन्दा आता या नहीं आता, बिजली नहीं आती, लूटपाट ज्यादा होने लगी है वगैरा-वगैरा.. मगर उसका हल कितनो ने बताया? आमिर अब हमेशा कोई न कोई नया सन्देश लेकर फिल्मे बनाते हैं और एक समय में सिर्फ एक ही काम में पूरी तरह से ध्यान देते हैं इसीलिए उन्हें सभी मिस्टर परफेक्ट कहते हैं, आप चाहे उनकी थ्री इडियट फिल्म में रैगिंग और पढाई के बोझ से आत्महत्या करने वाले विद्यार्थियों कि समस्या को सामने लाना हो या रंग दे बसंती में कमीशन वाले पुराने हवाई जहाजों की खरीद के बाद दुर्घटना का शिकार होने वाले पायलटों की समस्या के साथ देशभक्तों को आज के समय के अनुसार देश सेवा करने का जज्बा दिखाया गया हो.. या तारे जमीन पर बच्चों की बीमारी की समस्या और उसका समाधान दिखांए का प्रयास हो, हर एक फिल्म में एक नयी समस्या और उसका समाधान भी दिखाया गया है, देखने वाले की नज़र ही सही न हो तो उसे क्या दिखेगा? लोग कहते हैं कि आज बढ़िया गाने नहीं बनते, मैं उनसे पूछता हूँ कि क्या उन्होंने सारे गीतों को ठीक से सुना है? फूल खिला दे शाखों पे पेड़ों को फल दे मालिक.. गीत सुना है लाइफ एक्सप्रेस फिल्म का? अगर इस तरह के गीत आप सुन ही नहीं पते तो ऐसी टिपण्णी मत किया करें. इसी तरह अगर कोई सार्थक प्रयास शुरू करता है तो उसकी कमी निकलना बंद कीजिये जब तक आप खुद न ऐसा प्रयास कर रहे हों.
और रहा सवाल जिंदगी लाइव जैसे सार्थक धारावाहिक को इतने ज्यादा दर्शक न मिलने का, तो ऐसे जाने कितने ही धारावाहिक आये और चले गए, दूरदर्शन के धारवाहिकों में मैंने कभी बिखराव या अश्लीलता जैसी चीज़ें नहीं देखी मगर बाकी चैनल टी.आर.पी. के चक्कर में जाने क्या क्या दिखाते हैं, उनसे कितनो का घर टूटा या कितनो के दिल दुखी हुए किसी को उस से कोई मतलब नहीं, यहाँ तो खोजा जाये तो इतनी समस्याएं हैं कि सारे चैनल मिलकर भी उन समस्याओं को पूरी तरह से नहीं दिखा सकते. और इसका सबसे बड़ा कारण होता है किसी बड़े नाम का इनसे न जुदा होना, मैंने भी अपने ब्लॉग में कई नयी बाते, नयी समस्या सबके सामने राखी है मगर उतना ज्यादा रिस्पोंस नहीं मिला, यही बाते अगर कोई बड़ी हस्ती कहती तो सुर्ख़ियों वाली बाते हो गयी होती, मैं एक आम उदाहरण दे रहा हूँ, कहने वाले हर चीज़ कि बुराई कहेंगे.. उन्हें तो मेरी इस बात पर भी ये बुराई लगेगी कि ये खुद को क्या समझता है जबकि मेरा मकसद सिर्फ इतना बताना है कि आम आदमी की अच्छी बात भी लोग उनता ध्यान से नहीं सुनते जबकि बड़े लोगों की छोटी बात में भी उनको बड़ी बात नज़र आती, जैसे आपको बुखार भी आ जाये तो ये कोई खबर नहीं मगर किसी बड़ी हस्ती को छींक भी आ जाये तो सुर्ख़ियों में छा जाता है.
अब अगर वो कन्या भ्रूण हत्या, बल मजदूरी जैसी आम समस्याओं पर लोगों का ध्यान आकर्षित कर के सरकार से इसके समाधान का सराहनीय पर्यास कर रहे हैं तो इसे प्रोत्साहित करने की जरुरत है न कि हतोत्साहित करने की.
उम्मीद है कि अब मेरा लेख पढने वाले तो कम से कम ऐसे किसी की टांग नहीं खीचेंगे और अच्छे काम की सराहना करेंगे.

-गोपाल के.

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