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“हिंदी हैं हम
वतन है
हिन्दोस्तां हमारा।”
अक्सर हम सभी गणतंत्रदिवस या स्वतन्त्रतादिवस पर देशभक्ति गीत की ये पंक्तियाँ सुनकर देशप्रेम में डूब जाते हैं लेकिन कितने घण्टे तक? सिर्फ इन्ही दिनों कुछ ही घंटों के लिए ये भावना हम सबके दिल में आती है हमेशा क्यूँ नहीं आती?- मेरे दिल में ये सवाल बार-बार आता है।
कुछ सालों पहले तक तो हमसभी हिंदी को ही वरीयता दिया करते थे, लेकिन आजकल की तेज रफ़्तार जिंदगी में हिंदी पीछे रह गयी और दूसरे देश की भाषा अंग्रेजी हमारे देश में हिंदी से ज्यादा बोली और लिखी जाने लगी। आखिर क्या कमी रह गयी हमारी प्यारी हिंदी में जो वो अपनों के दिल में ही वो जगह नहीं बना पा रही है जो लंगड़ी भाषा अंग्रेजी ने बना ली? मैं किसी भी भाषा की बुराई नहीं कर रहा लेकिन जो सच है वो सच है और यही सच है की अंग्रेजी वास्तव में लंगड़ी भाषा है। वरना आप लाटूश रोड, करनल, साइको आदि शब्दों में इसकी लिखने, पढने और बोलने की विभिन्नता का कारण बताइए। क्यूँ अंग्रेजी में जो लिखा जाता है वो पढने में अलग और बोलने और समझने में अलग होता है? क्यूंकि उसे सरल बनाया गया है, जबकि अंग्रेजी के मुकाबले हिंदी और उर्दू कठिन समझे जाते हैं, वास्तव में है इसका बिलकुल उल्टा। अंग्रेजी में अल्फाबेट की संख्या हिंदी के स्वर और व्यंजनों के मुकाबले लगभग आधी है और एक बात ये भी कि अंग्रेजी में लिखने में कलम और कंप्यूटर का की बोर्ड काफी तेजी से काम करता है जबकि हिंदी में थोड़ी कठिनाई महसूस होती है। लेकिन जितनी शुद्धता हिंदी में है वो किसी और भाषा में नहीं। हिंदी एकमात्र ऐसी भाषा है जिसमे जो लिखा जाता है वही पढ़ा और बोला भी जाता है। संस्क्रत, उर्दू और फ़ारसी जैसी भाषाओँ के मिश्रण से वर्तमान हिंदी भाषा सम्पूर्ण भाषा बनकर उभरी है लेकिन अपनों का तिरस्कार ही इसे अपने ही देश में परायेपन का एहसास दिलाता है और गरीबों की भाषा समझने की गलती इन अंग्रेजी बोलने वालों द्वारा की जाती है। लता मंगेशकर, अमिताभ बच्चन, सचिन तेंदुलकर जैसे देश के सपूत जब हिंदी में जवाब या साक्षात्कार देते हैं तो बड़ी ख़ुशी होती है। मैं ये नहीं कहता कि अंग्रेजी को मत अपनाओ लेकिन कम से कम अपनी मात्रभाषा को तो जानों। आजकल के सभी कान्वेंट स्कूल हिंदी बोलने पर बच्चो को सजा देते हैं तो ऐसे में वो मासूम बच्चे हिंदी बोलने से क्यूँ न कतराएँ? माँ बाप की अपेक्षाओं पर खरा उतरने और बढ़िया नौकरी पाने के लिए हर घर की यही कहानी है, और ऐसे बच्चे हिंदी भाषा समझने और बोलने में तो माहिर होते हैं लेकिन उनसे देवनागरी भाषा में लिखने या पढने को कह दिया जाये तो उनको ऐसा लगता है जैसे कोई विदेशी भाषा पढने या लिखने को कह दिया गया है।
देश का कोई भी स्कूल हो उसे हिंदी अनिवार्य विषय में शामिल करने को जबतक बाध्य नहीं किया जाता तब तक हिंदी उपेक्षित होती रहेगी। जब इंग्लिश स्कूल अंग्रेजी बोलने को बाध्य कर सकता है तो देश अपनी मात्रभाषा को बाध्य क्यूँ न करे? ज्यादा नहीं केवल 50 नम्बरों का ही अगर हिंदी विषय का भी पेपर अनिवार्य कर दिया जाये तो काफी कुछ स्थिति सुधर सकती है। साथ ही आजकल इन्टरनेट के इस्तेमाल करने में भारत विश्व में चौथा स्थान प्राप्त कर चूका है ऐसे में अगर हिंदी के नए – नए और शुद्ध व्याकरण वाले सॉफ्टवेयर बनाये जाएँ तो हिंदी में इन्टरनेट इस्तेमाल करने वालों की संख्या में और इजाफा हो जायेगा। अभी तक जितने भी सॉफ्टवेयर मैंने देखे हैं उनमे कोई न कोई कमी रह ही जाती है। मोबाइल में ही देख लीजिये अंग्रेजी में अगर कोई SMS 160 शब्दों में आ जाता है तो वही सन्देश अगर आप हिंदी यानी देवनागरी में टाइप कर के भेजंगे तो शायद वो 500 से ज्यादा करैक्टर का हो जायेगा और उसके तीन गुना ज्यादा पैसे काट लिए जायेंगे, ऐसे में कोई क्यूँ अपनी जेब ढीली करना चाहेगा? भारत में बिकने वाले सभी मोबाइल, आई पैड, टेबलेट आदि में हिंदी भाषा जरुर शामिल की जाये। हम चीन को देख कर क्यूँ नहीं सीख लेते कि वह अपने हर नागरिक को चाइनीज़ भाषा इस्तेमाल करने को कहता है हमारे देश की तरह नहीं कि यहाँ पर दक्षिण के कुछ राज्य हिंदी बोलने वालो से नफरत तक किया करते हैं ऐसा ही अब असम जैसे पूर्वी क्षेत्रों में भी होने लगा है जहां पर हिन्दीभाषी नागरिकों को गोली मार दी जाती है। जब अपने ही देश में हिंदी बोलने पर मारपीट होने लगे और गोली मार दी जाये तो लोग क्यूँ हिंदी को अपनाने लगे? ये ढीला ढाला रवैया ही हिंदी को और पीछे धकेलता जा रहा है।
हिंदी को सम्मान दिलाने के लिए सरकार को ऐसे ही ठोस कदम उठाने पड़ेंगे और देशवासियों को हिंदी का इस्तेमाल बेझिझक करना होगा तभी हम हिंदी को मात्रभाषा होने का वास्तविक गौरव प्रदान कर सकते हैं।
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