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हिंदी दिवस पर हर वर्ष देश भर में अधिकतर शहरों में हिंदी दिवस वैसे ही धूम धाम से मनाया जाता है जिस तरह से किसी महान व्यक्ति को श्रद्धांजलि दी जाती है। हाँ, मुझे तो ये हिंदी को श्रद्धांजलि जैसी ही नज़र आती है क्यूंकि अगर ऐसा न होता तो हिंदी दिवस पर हम जो भी संकल्प करते उसे अगले हिंदी दिवस आने तक पूरा करते और हिंदी को आगे बढ़ाने में अपना सहयोग करते मगर ऐसा नहीं होता, हम बस उस एक पखवाड़े भर ही उसे याद करके फिर से भूल जाते हैं और बाकी के दिनों में अंग्रेजी के आगे हिंदी को भुला देते हैं।
अगर सच में हिंदी दिवस का आयोजन करना हो तो उसके प्रसार और प्रचार में मेहनत करने की जरुरत है साथ ही ये संकल्प लेना होगा कि हम पूरी कोशिश करेंगे कि हिंदी में ही अपना सारा काम करें। क्यूँकि ऐसा करने पर ही हम हिंदी को सही स्थान दिल सकते हैं वरना नहीं।
सिलसिला तो आज़ादी के जश्न का भी पुरे देश में धूम धाम से मनाया जाता है मगर वो देशभक्ति और देशप्रेम की भावना सिर्फ एक ही दिन सीमित हो कर रह जाती है बाकी दिनों में हम फिर से भ्रष्टाचार, बेईमानी और लालच के कामों में फंस जाते हैं, और ये काम देशभक्ति के तो नहीं ही होते हैं। ऐसे ही हिंदी दिवस का भी हाल है।
जब तक देश का कानून हिंदी को उसका अधिकार नहीं देता तब तक इसे सही सम्मान और उचित स्थान दिला सकना बहुत ही मुश्किल है। आखिर क्यूँ देश की अदालत हिंदी की उपेक्षा करती है? क्यूँ हिंदी की जगह क़ानून में अंग्रेजी और उर्दू का राज शुरू से कायम है? पुरे देश में एक सर्वे करवा लिया जाये की कितने लोग क़ानून को अंग्रेजी और उर्दू की जगह अपनी मातृभाषा हिंदी में चाहते हैं? जो भी फैसला होगा वो सभी को मान्य होना चाहिए क्यूंकि वो जनमत का फैसला होगा। जब तक लोगों को अपने अधिकार और देश का क़ानून ही पता नहीं होगा वो क्या अपने अधिकारों और अपने हक़ की लडाई लड़ सकेंगे? उसे तो जो कह दिया गया उसके लिए वही क़ानून है, आखिर ऐसा कब तक चलता रहेगा?
जब तक जनता अपने अधिकार नहीं जानेगी उसे भ्रष्टाचार और कुशासन से मुक्ति कदापि नहीं मिल सकती। हिंदी के साथ ही लोगों की शिक्षा पर भी ध्यान देने की जरुरत है, क्यूंकि यहाँ तो मैंने ऐसे लोगों को देखा है जो पढाई के नाम पर ये कहते हैं कि पढ़ लिख कर कौन सी नौकरी मिल जाएगी? बेटा अभी तो फावड़ा चला कर कोई न कोई मजदूरी कर भी लेता है पढ़ लेगा तो नवाब बन जायेगा और किसी काम का नहीं रहेगा, खेती बाड़ी का काम भी उसे अपनी तौहीन समझ में आने लगेगी। आखिर ऐसा क्यूँ? क्यूँ नहीं हमारी शिक्षा व्यवस्था ऐसी हो जाती कि वो पढ़ कर निकलने वालों के लिए नौकरी न सही कोई भी रोजी रोटी कमाने लायक तो बना सकती?
देश में पिछले बीस सालों में भरी परिवर्तन देखने को मिला मगर क़ानून अभी तक वही लचर अवस्था में है, जो क़ानून को तोड़ने वाले हैं उन्हें हर कानून का तोड़ पता है और वो कानून के साथ हम सभी को उँगलियों पर नचा रहे हैं, जब हिंदी में कानून और उसके फैसले आयेंगे तो लोगों को कानून का पता चलेगा फिर वो अंग्रेजी के मोहपाश में इतने ज्यादा बंधे हुए नज़र नहीं आयेंगे। सभी जब एक सुर में सुर मिलायेंगे तो कोई भी सरकार या क़ानून उनके साथ अत्याचार या गलत व्यव्हार नहीं कर सकता।
साथ ही गैर हिंदीभाषी राज्यों के स्कूलों में हिंदी अनिवार्य भाषा होनी चाहिए जिस से वह के लोग कम से कम अपनी मातृभाषा से थोडा तो परिचित हो सकें।
वो तो बॉलीवुड की फिल्मों का असर है जो गैर हिंदीभाषी राज्यों के अलावा विदेशों में भी लोग थोड़ी बहुत हिंदी समझने लगे हैं वरना हिंदी का इतना प्रसार भी न होता। और मुझे गर्व होता है खुद के कानपुर वासी होने का, क्यूंकि ये दिल्ली के बाद देश में दूसरा शहर है जहां पर इतनी शुद्ध हिंदी प्रयोग में लायी जाती है। अगर इसी तरह और भी शहरों में हिंदी शुद्ध रूप में प्रयोग होने लगे तो देश को तरक्की करने से कोई न रोक सकेगा।
मैंने अभी तक अंग्रेजी दिवस के बारे में नहीं सुना है, तो हिंदी दिवस क्यूँ सुनता हूँ? क्या हिंदी विलुप्त होने की कगार पर है जो इसका दिवस मनाया जाता है? हिंदी किसी एक दिवस या पखवाड़े की जगह रोज हर वक़्त की भाषा होनी चाहिए थी मगर अंग्रेजी को श्रेष्ठ मानने वालों ने हिंदी को हाशिये पर धकेल दिया है, जब तक हम सभी मिलकर हिंदी के प्रचार प्रसार में अपना थोडा ही लेकिन बहुमूल्य सहयोग नहीं करते हिंदी दिवस का कोई औचित्य नहीं रहेगा, क्यूंकि जो करना है हमे ही करना है और बूँद-बूँद से ही सागर बनता है।
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